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मै कुलदीप आपका मेरे ब्लॉग में स्वागत करता हूँ
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Friday, January 27, 2012

आज बड़ी अजीब सी बात से मेरा सामना हुवा बात ये हुई की मेरे एक मित्र  या ये कहिये ख़ास मित्र  मुझसे एक शोशल  नेटवर्किंग साईट  पर आज बहुत दिन बाद मिले .फिर क्या था वही पुरनी बातों का सिलसिला चल निकला . काफी देर बात करने क बाद उन्होंने मुझसे कहा  के भाई मै तुझसे थोड़ी देर  में बात करता हु अभी मुझे मज्जिद जाना है . मैंने कहा की बढ़िया है भाई जाओ मै तुम्हारा इंतजार करता हु.इसपर उन्होंने मुझसे कहा के भाई तुम साया ( छोटी बहन ) से बात करो जब तक मै वापस नहीं आ जाता  हु  .मैंने कहा के भाई छोटी बच्ची को साथ में लेकर जाओ तुम्हारे घर पर अभी कोई नहीं है तो उसको अकेले छोड़ना  सही नहीं है मेरे इस बात बार हमारे मित्र नाराज़ हो गए बोले के भाई तू जानता है क हमारे यहाँ लड़कियां  मज्जिद नहीं जाया कराती है तू बार  बार  क्यों उसे वहां ले जाने को बोल  रहा है .मित्र की इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया फिर भी  मुझको ये बात समझ नहीं आयी  के आखिर  महिलाये  मज्जिद  क्यों नहीं जा सकती क्या उनकी गलती ये है की वो किसी धर्म विशेस की महिला है क्या केवल पुरुषों को अधिकार है के वो महिलाओ को बताये के उन्हें क्या करना है जिसने खुद भगवान को पैदा किया जिसको  उसने कितने महीना अपने पेट में रखा  मुझे नहीं लगता की कोई खुदा  या कोई भगवन अगर  वो  सच  में  खुदा या भगवान है तो वो कभी  अपनी माँ को अपने घर में आने से रोकेगा ये सिर्फ समाज के द्वारा  बनाया हुवा बेकार सा बहाना है के महिलाये कभी पुरुषो पर हावी न हो सके वो हमेशा पुरुषों  के  नीचे रहे मै  अपने मित्र  या किसी भी धर्म विशेष  की भावना को ठेस  नहीं पहुचना चाहता हु  ओर  अगर किसी को मेरी बात गलत लगती हो  तो मै माफ़ी चाहत हु  ओर सबसे  इस  विषय पर  सोचने की अपील  करता हु

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